दिल्लीः
अरुण जेटली ने एक बार संसद में कहा था कि "सर्वोच्च न्यायालय अचूक नहीं है, केवल अंतिम है और उससे ऊपर केवल ईश्वर है, और वह निर्णयों को सही नहीं करता। अगर अदालतें कहती हैं कि सरकार अपना कर्तव्य नहीं निभा रही है और हस्तक्षेप करती हैं, तो 3 करोड़ लंबित मामलों का क्या? क्या कोई और उनका काम करेगा?"
अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने यह कहकर सुप्रीम कोर्ट को घेरा है कि "भारत की न्यायिक प्रणाली, विकसित भारत के सपने में सबसे बड़ी बाधा है। मोदी सरकार के एक शीर्ष सलाहकार के ऐसे साहसिक शब्द अतिशयोक्ति न होकर कहीं न कहीं सुप्रीम कोर्ट को आईना दिखा रहे है तथा भारत की न्यायपालिका ही विकसित भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा बनती रही है और न्यायिक अतिक्रमण खदानों, कारखानों और बुनियादी ढांचे को रोक रहा है, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी तालियाँ बजा रहे हैं तथा उस समय शाहबानो मामले में प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और कूड़ेदान में फेंक दिया था।
सान्याल ने आगे कहा कि आप ऐसा पेशा नहीं अपना सकते जहाँ आप 'माई लॉर्ड' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें या किसी याचिका को 'प्रार्थना' कहें। हम सब एक ही लोकतांत्रिक गणराज्य के नागरिक हैं इसलिए ऐसा कहकर आप मजाक नहीं कर सकते हैं। न्यायपालिका भी राज्य के किसी भी अन्य हिस्से की तरह एक सार्वजनिक सेवा है। क्या आप पुलिस विभाग या अस्पतालों को महीनों तक बंद रखते हैं क्योंकि उस विभाग के अधिकारी भी गर्मी की छुट्टियाँ चाहते हैं? फिर न्यायपालिका को एक महीने की गर्मी की छुट्टी क्यों चाहिये ?
क्या यह उनकी निजी राय है या किसी बड़ी घटना का संकेत है, लेकिन जो भी हो सान्याल ने न्यायपालिका पर सीधे सीधे शाब्दिक हमला कर बता दिया कि जनतंत्र एवं लोकतंत्र में कोई भी छोटा बड़ा नहीं है।
इससे भी बुरी बात यह है कि अदालतें तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लॉबी को खुश करने के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए हिंदू-विरोधी पूर्वाग्रह को और बढ़ा रही हैं एवं अल्पसंख्यकों के मुद्दों को लेकर चुनिंदा लापरवाही, बहुसंख्यकों की शिकायतों के प्रति उदासीनता है इसलिए यह न्याय नहीं बल्कि न्यायिक राजनीति है।
अब धीरे धीरे ही सही देश की जनता आवाज उठा रही है कि अब भारत एक कॉलेजियम कार्टेल बर्दाश्त नहीं कर सकता जहाँ न्यायाधीश गुप्त रूप से न्यायाधीशों का चयन करते हैं जबकि इसकी जगह योग्यता-आधारित, पारदर्शी और निष्पक्ष चयन अपनाना चाहिए और कॉलेजियम खत्म करना ही चाहिए।
विकसित भारत बनाने के लिए सबसे पहले खासकर सुप्रीम कोर्ट में तुष्टिकरण न्याय खत्म करें और हमें याद रखना चाहिए कि हमारे देश में 25 करोड़ से ज़्यादा युवा सिर्फ़ स्कूलों में हैं और उन्हें उच्च प्रदर्शन करने वाला बनाने के लिए एक प्रणाली पर काम करना पड़ेगा तब कहीं जाकर वे नवाचार, निर्यात और स्टार्टअप के साथ ख़ुद ही अपने भविष्य का निर्माण कर सकेंगे।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सरकार को ज़मीनी हक़ीक़त जानने के लिए एक लोक शिकायत, योजना और सुझाव मंत्रालय की सख्त ज़रूरत है।