Today Sunday, 20 July 2025
आस्था

न भुजाएं - न चरण, बड़ी-बड़ी आंखें...पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ईश्वर का स्वरूप ऐसा क्यों है !


        संस्कृतियों, त्योहारों और रहन-सहन की विविधता वाले अपने देश में कुछ त्योहार और उनकी रीतियां ऐसी हैं जो कि विश्व प्रसिद्ध हैं. ओडिशा के पुरी धाम स्थित जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा इसी तरह का एक वार्षिक अनुष्ठान है।
आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को पुरी के श्रीमंदिर से भगवान जगन्नाथ की उनके भाई-बहन के साथ रथयात्रा निकलती है, जिसके साक्षी देश भर के श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि विदेशी भी बनते हैं.
जगन्नाथ कौन हैं और किसके अवतार हैं, इसे लेकर विष्णु पुराण, नारद पुराण और हरिवंश पुराण में विस्तार से जिक्र होता है. इनमें भगवान विष्णु के कई नामों में से उनका एक नाम जगन्नाथ बताया गया है और जगत पालक के रूप में ही उनकी पूजा होती है।
जगन्नाथ मंदिर में भगवान के जिस स्वरूप के दर्शन होते हैं वह द्वापर युग से जुड़ा हुआ है और इसकी कड़ियां कृष्ण कथा से जुड़ती हैं.
 
एक दिन श्रीकृष्ण की दो पत्नियां सत्यभामा और जाम्बवंती श्रीकृष्ण की मां रोहिणी से जिद करने लगीं कि उन्हें कृष्ण-बलराम की गोकुल-ब्रज और वृंदावन वाली कथाएं सुननी हैं.जाम्बवंती ने कहा कि यहां सभी श्रीकृष्ण के बचपन की कहानियां खूब कहते-सुनते हैं. वहीं सत्यभामा कहने लगीं कि मैंने तो राधा की भी कहानियां सुनी हैं. मैंने रुक्मणि दीदी से पूछा तो वह भी हंसकर टाल देती हैं।
कोई हमें कुछ बताता ही नहीं है. ये सब सुनकर वसुदेव की पहली पत्नी और बलराम जी की मां रोहिणी खूब हंसने लगीं. पहले तो उन्होंने मना किया, लेकिन जब दोनों ही बहुएं बहुत जिद करने लगीं तब उन्होंने कहा कि ठीक है, मैं तुम दोनों को कृष्ण की बाल लीला सुनाऊंगी, लेकिन ध्यान रहे कि ये कथा कृष्ण और बलराम के कानों में न पड़ जाए, अगर ऐसा हुआ तो दोनों ही इस कथा में इतना डूब जाएंगे कि फिर वे ब्रज की ओर ही चले जाएंगे. तब तुम सभी कुछ नहीं कर पाओगी.
 
इस पर सत्यभामा प्रसन्न होते हुए बोलीं, आप चिंता न करें, मेरे पास एक योजना है।
हम सभी एक दिन रैवतक पर्वत पर मां अम्बिका के पूजन के लिए चलेंगे. सुहागिन स्त्रियों के इस पूजन के लिए सभी इकट्ठा होंगी और इस तरह हमें एकांत भी मिल जाएगा. ऐसी योजना बनाकर द्वारिका के राजमहल की सभी बहुएं, श्रीकृष्ण की बालकथा सुनने के दिन का इंतजार करने लगीं.
तय दिन सभी बहुएं रोहिणी मां के साथ रैवतक पर्वत पर देवी अंबिका के मंदिर पहुंचीं. यहां उन्होंने सुभद्रा को बाहर पहरे पर बिठा दिया और फिर सभी रोहिणी मां से कथा सुनने लगीं. देवी रोहिणी ने देवकी और वसुदेव के विवाह से कथा का आरंभ किया. कंस द्वारा आकाशवाणी को सुनना, ऋषि की हत्या, नवदंपति को कारागार में डालना और देवकी के छह पुत्रों की हत्या की घटना सुनकर सभी भावुक हो गईं.
 
माता रोहिणी एक-एक कर घटनाक्रम का वर्णन करती जा रही थीं. फिर उन्होंने कृष्ण जन्म की कथा सुनाई. कहा कि एक काली रात में कान्हा ने बहन देवकी के गर्भ से जन्म लिया।
इस दौरान वर्षा ऋतु का समय था और अपने पुत्र के प्राण बचाने के लिए स्वामी वसुदेव ने उफनती यमुना नदी को पार किया और कान्हा को गोकुल के पार पहुंचा दिया. तुम सबके दाऊ बलभद्र को मैं पहले ही गोकुल पहुंचा चुकी थी।
कान्हा के गोकुल में पहुंचते ही सारी सृष्टि मुस्कुराने लगी. दिन बीतने लगे और बलभद्र-कान्हा की शरारतों, अठखेलियों, नटखट लीलाओं से सारा ब्रज खिलखिलाने लगा. उसने बालपन में ही कंस के भेजे राक्षसों का वध कर दिया. शकटासुर, पूतना, वकासुर, अजासुर सभी का उद्धार किया।
माता रोहिणी कथा सुनाते जा रही थीं और उनकी बहुएं इस कथा के सागर में डूबती जा रही थीं.
 
उधर, द्वार पर खड़ी सुभद्रा का भी यही हाल था. क्योंकि यह सिर्फ कृष्ण और बलराम की ही कथा नहीं थी, बल्कि उसके भी बचपन की बात थी.सुभद्रा यह सब सुनते-सुनते जड़वत हो गईं.रोहिणी कथा सुनाती जा रही थीं।
कृष्ण जब मुरली बजाना शुरू करते तो गोपियां अपने काम-धाम छोड़ देती थीं. गायों के थन से खुद दूध झरने लगते, रसोई में दूध उफन कर बह जाता तो चूल्हे पर रोटियां जल जातीं.स्त्रियां श्रृंगार भूल जातीं.काजल गाल पर लगा लेतीं, कुमकुम होंठ पर मल लेतीं और ध्यान में बैठी गोपियां भी सुध भूल जाती सबसे विचलित होती राधा, जो मुरली की तान सुनकर ही वन में दौड़ी चली जाती थीं.  
 
उधर, राजमहल में राज परिवार की स्त्रियों के न होने से हलचल मच गई. कृष्ण-बलराम ने सुना तो किसी अनिष्ट की आशंका से खुद सुभद्रा व अन्य सभी को खोजते हुए रैवतक मंदिर तक पहुंच गए।
वहां उन्होंने सुभद्रा को जड़ स्थिति में खड़े देखा तो वे भी वहीं खड़े हो गए, उधर माता रोहिणी अपनी कथा सुनाने में ही मग्न थीं. अपनी बालकथाएं सुनते-सुनते तीनों भाई-बहन जड़वत हो गए. उनके अस्तित्व खोने लगे. नेत्र फैलने लगे।
हाथ-पैर लुप्तप्राय से लग रहे थे. ऐसा लगता था कि जैसे शरीर से कोई धारा ही फूट पड़ी हो. बाललीला का प्रसंग अंदर जारी था और इधर श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई और बहन के साथ परमलीला कर रहे थे.
 
इतने में देवऋषि नारद वहां पहुंचे. प्रभु को इस रूप में देखकर वह भी विह्वल हो गए।
मुनि के चेताने पर प्रभु अपने वास्तव में लौटे तो देवर्षि ने उनसे इसी स्वरूप में दर्शन की विनती की. कहने लगे कि प्रभु मैंने जिस स्वरूप के दर्शन किए हैं, मैं चाहता हूं कि धरतीलोक में चिरकाल तक आपका इस स्वरूप में दर्शन हों. प्रभु ने कहा-देवर्षि, जैसा आपने कहा है वैसा ही होगा।
कलिकाल में इसी रूप में नीलांचल क्षेत्र में अपना स्वरूप प्रकट करूंगा. आपने जिस बालभाव वाले रूप में मुझे अंगहीन देखा है. तब मेरा वही विग्रह प्रकट होगा. मैं स्वयं अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए उनके बीच जाऊंगा. अपने भाई-बहन के साथ मेरा ये स्वरूप जगन्नाथ के नाम से जाना जाएगा.
श्रीकृष्ण के दिव्य वाक्यों के अनुसार कलयुग में उसी दिव्य स्वरूप के विग्रह ने प्रकट होकर जगन्नाथ प्रभु के रूप में भक्तों को दर्शन दिया. रथयात्रा के स्वरूप में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ भक्तों के बीच आते हैं।
उनके हाथ-पैर नहीं हैं. केवल आंखें ही आंखें हैं ताकि वे अपने भक्तों को जी भरकर देख सकें.
 
‼⭕❤ जय श्री जगन्नाथ महाप्रभु ❤⭕‼
 
- साभार  -
- आरती मिश्रा •
 

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