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महाभारत और '18’ दिन का रहस्य !
एक ऐसा युद्ध, जिसमें धर्म और अधर्म, रिश्तों और कर्तव्यों, प्रेम और घृणा — सबका अंत हुआ।
यह हकीकत उस युग की सबसे निर्णायक लड़ाई में…
पहला दिन
युद्ध की शुरुआत शंखनाद से हुई।
भीष्म पितामह कौरवों के सेनापति बने।
अर्जुन का मोहभंग हुआ और श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया।
➡ यह दिन "धर्म बनाम संबंध" की नींव रख गया।
दूसरा दिन
कृष्ण ने अर्जुन को प्रेरित किया, अर्जुन ने कौरव सेना पर भीषण प्रहार किया।
भीम ने दु:शासन को ललकारा।
➡ रक्त बहना शुरू हुआ, युद्ध का असली चेहरा सामने आने लगा।
तीसरा दिन
भीष्म की अगुवाई में कौरवों का पलड़ा भारी रहा।
पांडवों की सेना में बड़ी क्षति हुई।
➡ धर्म की राह कठिन होती है, पर अडिग रहना ही सच्ची वीरता है।
चौथा दिन
भीम ने अपनी प्रतिज्ञा की पहली सीढ़ी चढ़ी — कौरव सेना में तबाही मचाई।
➡ प्रतिशोध का बीज गहराता गया।
पांचवां दिन
अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्रों से कौरव सेना को चौंका दिया।
➡ युद्ध अब केवल तलवारों का नहीं, मनोबल का भी बन गया था।
छठा दिन
दोनों पक्षों ने बड़ी संख्याओं में योद्धा खोए।
➡ पीड़ा और शोक हर योद्धा की आंखों में दिखने लगा।
सातवां दिन
द्रोणाचार्य ने अपनी विद्या से पांडवों की सेना में सेंध लगाई।
➡ गुरु भी युद्ध भूमि में अधर्म के पक्ष में खड़े दिखे।
आठवां दिन
भीम और दुर्योधन के बीच जबरदस्त द्वंद्व।
➡ बचपन की ईर्ष्या अब रणभूमि में ज्वाला बन चुकी थी।
नौवां दिन
भीष्म की अपराजेयता सामने थी।
कृष्ण ने संकेत दिया अब नीति से काम लेना होगा
➡ युद्ध में जीत के लिए कभी-कभी नीति को भी अस्त्र बनाना पड़ता है
दसवां दिन
भीष्म शरशैया पर लेट गए
अर्जुन ने उन्हें गिराया,लेकिन प्रेम और सम्मान के साथ
➡ यह था धर्म युद्ध का सबसे भावुक दृश्य।
ग्यारहवां दिन
अब द्रोणाचार्य बने सेनापति।
➡ युद्ध की रणनीति बदलने लगी।
बारहवाँ - चौदहवें दिन
अभिमन्यु का चक्रव्यूह में बलिदान।
➡ एक बाल योद्धा की मृत्यु ने युद्ध को और क्रूर बना दिया।
पंद्रहवें दिन
द्रोणाचार्य वध — अश्वत्थामा की झूठी मृत्यु की अफवाह से।
➡ जीत के लिए नीति का अंधा उपयोग शुरू हो चुका था।
सोलहवां दिन
कर्ण की असल परीक्षा शुरू हुई।
➡ सच्चा दानवीर, पर युद्ध में उलझा हुआ धर्मविरोध।
सत्रहवां दिन
कर्ण वध — अर्जुन के हाथों।
➡ मित्रता, धर्म, और मर्यादा — सबका टकराव।
अठारहवें दिन
भीम ने दुर्योधन की जांघ तोड़ी — प्रतिज्ञा पूर्ण की।
अश्वत्थामा ने रात को पांडवों के पुत्रों का वध किया।
➡ यह था महाभारत का सबसे काला अध्याय।
अंत में?
18 दिन, 64 करोड़ सैनिक, और अंत में केवल 11 बचे।
पांडव जीत गए… पर क्या सच में?
धर्म की जीत तो हुई, पर अपनों की राख में लिपटी हुई।
१८ का गहरा संबंध महाभारत से क्या है -
18 अक्षौहिणी सेना —
11 कौरवों की, 7 पांडवों की
18 पर्व महाभारत में —
संपूर्ण ग्रंथ 18 खंडों में
18 अध्याय भगवद्गीता के —
आत्मा से ब्रह्म तक की यात्रा।
18 क्यों?
संस्कृत में "अष्टादश" = 18
1 + 8 = 9
"9" नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करता है
युद्ध भी कर्म और ग्रहों के संयोग से ही होता है
➡ महाभारत युद्ध = कर्मों का अंतिम न्याय।
- साभार -
● सुचेता सागर ●
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