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भारतीय SEAFOOD के लिए अमेरिका तरसेगा
कहा जाता है कि जब एक दरवाजा बंद होता है, तो दूसरा दरवाजा ही नहीं बल्कि दूसरा बाज़ार खुल जाता है और अब अमेरिका द्वारा 50% टैरिफ लगाए जाने के बाद भारत समुद्री खाद्य (SEAFOOD) निर्यात को जापान, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में स्थानांतरित करेगा जहां भारतीय उत्पादों की मांग में भारी वृद्धि हो रही है वैसे भारत की पहुँच पूरे हिंद महासागर तक है, फिर भी हमें दूसरे देशों से समुद्री भोजन आयात करना पड़ता है।
अब हमें अपने मछुआरा समुदायों को समुद्री भोजन (SEAFOOD) इकट्ठा करने के आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराने होंगे और तब हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन पाएँगे। अमेरिका ने भारतीय समुद्री खाद्य पदार्थों पर 50% टैरिफ लगा दिया है लेकिन भारत ने इसके बारे में रोना नहीं रोया और न ही अमेरिका के सामने गिड़गिड़ाया बल्कि भारत ने बस अपना रुख बदल लिया और इस दिशा में जापान, चीन, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ सभी माँग के साथ पंक्तिबद्ध में हैं।
अमेरिका ने भारत के साथ टैरिफ का खेल तो खेला था बहुत तगड़ा और ट्रम्प को लगा कि भारत झुक जायेगा लेकिन अमेरिका के लिए यंहा दांव उल्टा पद गया क्योंकि अमेरिका को दो तरफ से नुकसान हुआ। पहला उनके पास विकल्प काम है जिससे वंहा के उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है और अमेरिका जिस टैरिफ को ताकत की तरह इस्तेमाल कर रहा था अब वह आत्मविनाश साबित हो रहा है एवं भारत के साथ सम्बन्ध में भी दरार आ गई है।
SEAFOOD माँग वैश्विक है और जहाँ पैसा बहेगा, मछलियाँ वहीं तैरेंगी लेकिन हम इस सत्य कोज्हुथाला भी नहीं सकते कि भारत के 7.38 अरब डॉलर के समुद्री खाद्य निर्यात पर 50% अमेरिकी टैरिफ का असर पड़ रहा है, जिससे झींगा निर्यात का 35-40% हिस्सा प्रभावित हो रहा है लेकिन ब्रिटेन के सीईटीए (2025) में टैरिफ में कटौती और यूरोपीय संघ की बढ़ती माँग के साथ, भारत जापान, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बाजारों की ओर रुख कर रहा है। सरकार प्रसंस्करण को बढ़ावा देने और बाजारों में विविधता लाने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रही है।
आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बैठक के बाद जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा पर जाएंगे जिससे भारत के निर्यात बाजार का विस्तार होने की संभावना को नाकारा नहीं जा सकता है और वहां के निर्माताओं को लाकर मेक-इन-इंडिया पहल को भी बढ़ावा देने कोशिश की जा सकती है लेकिन भारत को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि एशियाई बाजार में चीन पहले से ही दक्षिण चीन सागर से समुद्री खाद्य (SEAFOOD) उत्पादन में बहुत मजबूत है इसलिए कहा जा सकता है कि राह इतना आसान भी नहीं है।
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