ब्रिटिश नहीं, बल्कि भारतीय सैनिकों ने हमें ओटोमन शासन से मुक्त कराया; इजराइल स्कूली पाठ्य पुस्तकों में बदलाव करेगा। हाइफ़ा शहर के मेयर ने घोषणा किया है कि इज़राइली स्कूली इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को इस तथ्य को दर्शाने के लिए अद्यतन किया जाएगा कि 1918 में शहर को ओटोमन शासन से मुक्त कराने के लिए ब्रिटिश नहीं, बल्कि भारतीय सैनिक ज़िम्मेदार थे।
"मैं इसी शहर में पैदा हुआ और यहीं से स्नातक किया। हमें लगातार यही बताया जाता था कि इस शहर को अंग्रेजों ने मुक्त कराया था, जब तक कि एक दिन ऐतिहासिक सोसायटी के किसी व्यक्ति ने मेरे दरवाज़े पर दस्तक नहीं दिया और कहा कि उन्होंने गहन शोध किया है और पाया है कि यह अंग्रेज़ों का काम नहीं था। बल्कि, भारतीयों ने ही इस शहर को (ओटोमन से) मुक्त कराया था," हाइफ़ा के मेयर योना याहाव ने कहा।
उन्होंने यह टिप्पणी शहीद सैनिकों के भारतीय कब्रिस्तान में उनके शौर्य के सम्मान में आयोजित एक समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए बताया।
याहाव ने कहा, "हर स्कूल में, हम पाठ्य पुस्तकों में बदलाव कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हमें आजाद कराने वाले अंग्रेज़ नहीं, बल्कि भारतीय थे।"
उन्होंने कहा कि अधिकांश युद्ध इतिहासकार इसे "इतिहास का अंतिम महान घुड़सवार अभियान" कहते हैं, जिसमें भालों और तलवारों से लैस भारतीय घुड़सवार बटालियनों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान माउंट कार्मेल की चट्टानी ढलानों से ओटोमन सेनाओं को खदेड़ दिया था ताकि शहर को मुक्त कराया जा सके।
अगर भारतीय वीर ना होते तो प्रथम विश्व युद्ध हो या द्वितीय विश्व युद्ध मित्र देशों का युद्ध में टीका रहना मुश्किल ही था। भारतीय बलिदानियों के खून से इन देशों ने अपनी विजय गाथा लिखी है।
यह कार्य तत्कालीन महाराज जोधपुर के आदेश पर राठौड़ राजपूतों की घुड़सवार सेना ने किया था । इस युद्ध के नायक मेजर दलपत सिंह शेखावत थे और आज भी हाइफा दिवस पर जोधपुर महाराज की इजरायल बुलाया जाता है।
1918 में हाइफ़ा को ऑटोमन शासन से आज़ाद कराने वाले ब्रिटिश नहीं, बल्कि भारतीय वीर घुड़सवार थे जो भाले-तलवार से लैस होकर उन्होंने असंभव को संभव किया।
इसलिए भारत के वीर सपूतों का लहू ही विश्व की आज़ादी का गारंटी माना जाता है।